!! अनहद
की मधुशाला!!
--------------- बसीर अहमद मयूख
जाने
कैसी मय पी आया
अनहद की
मधुशाला जाकर
तेरा
मेरा भेद भुलाया
मनुआ
मेरा मस्त कलन्दर
सांसे जाप जपा करती हैं
अल्ला हू अकबर, हर हर हर हर !
मदिरा
मोह जगाती लेकिन
इस हाला
का हाल निराला
एक बूंद
पी लगता जैसे
चेतनता
का घट पी डाला
इसको पी कर औघड़ जोगी
गोरख बोला जाग मछन्दर!!
क्या
बोलेगा पोथी पतरा
ज्योतिषी
बोलेगा क्या खाकर
मेरी
जन्म कुंडली बाँची
एक अकाल
पुरुष ने आकर
लिखा हुआ था घट के पट पर
नाम उसी का अक्षर अक्षर !!
अपनी
सारी व्यापकता को
आकाशी
गंगाओं में भर
कुदरत के
हर नज्जारे में
जाहिर
होता वही अगोचर
वेद पुकारे उसे महत्तर
कुरुआं बोले अल्ला हू अकबर!!
जल थल
पावक गगन समीरन
उस विराट
की काया के कण
उसका रूप
बखाने वाले
नेति
नेति कह गए सुधिजन
बाहर तो उसकी छवियाँ हैं
मेरा दिलवर दिल के अन्दर !!
उसका
अक्षय श्रोत सुरा का
मैंने पी
बस एक बूंद भर
उसकी
प्यास चुनौती हो तो
पा
जायेगा सात समन्दर
मनुआ मेरा मस्त कलन्दर
अनहद की मधुशाला जाकर !!
-------------------------------- बसीर अहमद मयूख
Very Nice Bhai Ji.
ReplyDeleteThank you Dear.
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